बिदाई करा कर बारात वापस आयी और मैं इन्हें अपनी नौकरी वाले शहर ले आया....
छोटा सा मकान ...
आगे बरामदा... दो कमरे, किचन , पीछे कच्चा मिट्टी वाला आंगन जिसमे एक नीम का पंद्रह बीस फुट ऊंचा पेड़ था...
पहले ही दिन सवेरे सवेरे इन्होंने आंगन के सेंटर में गोबर से लीप कर मायके से लायी तुलसी लगा दी और चारो तरफ़ रंगोली बना कर दीपक जला मेरी तरफ़ विजयी भाव से देखा...
मैं तो पहले ही सब हार चुका था .. बस मुस्कुरा दिया...
इन्होंने मेरे क्वार्टर को उस सवेरे घर मे बदल दिया था...
नीम वाले आँगन में कुछ कमी तो मुझे पहले भी लगती थी पर वो क्या थी , इन्होंने पहली सुबह ही बता दिया....
गाँव और शहर का फर्क मुझे कभी इनकी चेहरे हाथों की भाव भंगिमाओं में तो कभी चौड़ी फैलती आंखों में तो कभी मुँह से निकलती हाय राम...जे का है तो कभी हाय दैया मे....
हर वक़्त एक ही सवाल पूछती... आपको का पसंद...
का खाओगे ...
का बनाएं ....
ऐसा दिन में चार पाँच बार तो हो ही जाता और मैं टटोल रहा था कि इसे क्या क्या पसंद है....
गाँव की मिठाई , साड़ियां , गहने इन्हें शहर में नही दिख रहे थे....बाज़ारो में इनको इतना सब नया नया दिख रहा था ये हर दुकान पर रुक कर पूछती ...
जे का है ....
जा से का होत ...जे आपको पसंद बो ले लो आप अपने लाने ....
मैं इसे पूछता ये ले लो , ये पहनोगी ये खाओ , ये ले चलो .. पर हर बात का उत्तर एक ही होता ...हमे का कन्ने जे सब ले कर , हमे नई लेने !"
एक महीना हो चला । इनका यही ' ना ना का पहाड़ा ' चल रहा था , मुझे अच्छा नही लग रहा था जो हर बात के लिए मना कर देती ।
वो शाम गहरा गयी थी ।
आकाश में बादल भी घुमड़ रहे थे , आज शायद बारिश होगी , मैंने इन्हें कहा ... और लाइट चली गईं ।
बारिश के आसार होते ही बिजली जाती रहती थी पर शादी के बाद पहली बार आज शाम को घुप्प अंधेरा छा गया । मैं कुछ कहता इससे पहले ही ये आले में रखी ढिबरी जलाने की तैयारी करने लगी ।
उनकी आँखों में मुझे मायके की चमक दिख रही थी धुंधलके में घूँघट से ढिबरी की लौ में एक बार फ़िर से गाँव के उस पीछवाड़े के हीरे चमक उठे और मैं सम्मोहित सा इन्हें देख रहा था ।
ये माचिस जलाती और मैं फूँक मार कर बुझा देता ,तीन चार बार ऐसा ही किया और घूँघट चुप चाप झुक गया ..
मैंने कहा , " आज तुम्हे बताना ही पडेगा कि तुम्हे क्या क्या पसंद है .. सब्ज़ी में , मिठाई में , गहनों में , कपड़ो में कुछ बोलती ही नहीं , आज बताना ही पड़ेगी अपनी पसंद . ... वरना मैं ढिबरी नही जलने दूँगा ..। "
अचानक ... घूँघट मेरे सीने से आ लगा और मद्दम आवाज़ आयी , " आप और सिर्फ़ आप ... बस !" उस रात .. न तो बिजली आयी और न ढिबरी ही जली ... पर रात भर बादल बरसे और ... ख़ूब बरसे ...
एक सुंदर रचना...
#दीप...🙏🙏🙏
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