वो तीनो खूब शॉपिंग-वॉपिंग करके घर लौटे.... 
पत्नी सुधा ने ताला खोला.... समान रखा और रसोई में पानी लेने चली गई... 
थक कर चूर सोफे पर निढ़ाल सी पड़ी बड़ी बहन अपना पर्स खोलकर पैसे देती हुई भाई से बोली -ये ले मोनू....

"ये क्या दीदी....मोहन बोला

" मेरी साड़ी के पैसे है.... 
तूने दुकान में मेरी और सुधा की साड़ी का बिल इकठ्ठा पे कर दिया था ना....वही...

"तो....अब मैं तुमसे इसके पैसे लूँगा....
भूल गई क्या.... कितना किया तुमने मेरे लिए......
पापा से छिपाकर कॉलेज के साथ-साथ और दूसरे कोर्स की भी फीस दे जाती थी......कभी कभी तो सिनेमा के लिए भी...
मां नहीं थी हमारी पर तुम तो मेरे लिये मां भी बन गई ... तुम ना होतीं तो आज मैं इतना कामयाब ना होता...
और तुम मुझे.....

" चुप कर....तू छोटा है मुझसे मोनू और छोटा ही रहेगा... चल रख ये....

"अच्छा ये बताओ दीदी, पापा जब कुछ दिलाते थे तो क्या तुम उन्हें भी पैसे देतीं थी....

"अरे.... उन्हें क्यूँ देती भला.... 
पापा को भी कोई पैसे देता है क्या....

" बिल्कुल सही कहा... तो ये समझ लो की आज से मै तुम्हारा छोटा पापा हूं....
अब कोई बहस नहीं होगी...

बहन दीवार पर लगी तस्वीर की ओर भीगी हुई पलकें लिए देख कर हंसते हुए बोली - देख रहें हैं पापा...
चेहरा आवाज़ बिल्कुल आप की तरह और अब डपट भी आप ही की तरह रहा है....
ये मेरा छोटा पापा.....
एक सुंदर रचना...
#दीप...🙏🙏🙏