पांच साल हो गए रीना के अन्तर्जातीय विवाह को....विवाह के बाद वैसे तो पिता और भाई भाभी काफी नाराज हुए थे और रिश्ता तक खत्म करने को कह चुके थे मगर फिर पिता थोडे नरम पडे और रीना सुख-दुख, तीज-त्यौहार में मायके आ जाती ....वैसे सम्बन्ध औपचारिक ही थे... लेकिन इधर पिता के बीमार पड़ने के कारण रीना हफ्ते में एक-दो बार मायके आ जाती है पिता की सेवा-टहल करती है....
 पिता का चट्टानी ह्रदय  मोम- सा पिघल गया...
किसी को पता ही नहीं चला, वसीयत में बेदखल की गई रीना को वसीयत बदलने से जायदाद में हिस्सा मिल गया.... 
बाप-बेटी का प्यार ज्वार-सा देखकर बेटा दुखी हो गया... एक दिन अपनी पत्नी से कहने लगा... 
‘‘सुनो, यह सब हो क्या रहा है....
हमने तो इतनी कोशिशें करके पिता जी से रीना के संम्बंध तुड़वाए थे की अब सबकुछ केवल हमारा होगा... 
लेकिन सब गड़बड़ हो गया....

जुए मे हारे हुए जुआरी- सी पत्नी बोली...
‘‘अब तो सब कुछ खत्म हो गया, तुम देखते ही रहे.. 
पिता जी ने बिटिया रानी को उनके हिस्से की जायदाद दे दी है....
वह पुनः ऊंचे स्वर में बोली, ‘‘यह सब तुम्हारी ही गलती है बहिन का आना-जाना रोकना चाहिए था....

 ‘‘अरे.... मैं कैसे रोक सकता हूँ , बाप से बेटी को मिलने के लिए ...
और वह तो सेवा करने आती थी और जीत गई...
और तुमने भी तो पिताजी का ध्यान नही रखा....
जरा सा बिस्तर गंदा ही तो किया था उससे तुम्हें घृणा आती थी ......काश.... तुमने उनकी देखभाल की होती तो....
तो....तुम तो बेटे हो तुमने कयो कुछ नही किया ....बदबू आती है किसने बोला था ....
खैर छोडो....वैसे रीना हमेशा जीती ही है शुरू से- चाहे खेल हो, डिबेट हो, बहस हो, वह क्लास में भी हमेशा फस्ट आती रही है....और वह इस खेल में भी जीत गई...

  बाहर दरवाजे पर खड़ी रीना सब कुछ सुन रही थी, आँखो में आँसू बह निकले थे, धीरे से कमरे के अन्दर आकर बोली, ‘‘भैया, यह तो सही है मैं हमेशा जीती हूं, लेकिन यह खेल नहीं, बाप-बेटी का प्यार है और जीत हमेशा प्यार की होती है.....
एक सुंदर रचना...
#दीप...🙏🙏🙏🙏