ज्योति ने घर के अंदर कदम रखा...
अपना बैग बाहर के टेबल पर पटक कर सीधे बाथरूम में घुस गई...
नहाकर बाहर आई तो किचन में मां की तेज आवाज सुनाई दी, "आ गई मदर टेरेसा....
"दीदी खाना खा लो" छोटे भाई ने कमरे के बाहर से आवाज़ लगाई।
"नही.... रहने दे, मम्मी की बात सुन कर पेट भर गया" बोलकर ज्योति सोने चली गई।
एक घंटे आराम के बाद उसे फिर से ड्यूटी पर जाना था बहुत थकी हुई थी पर जाना ही था, तैयार हुई मास्क लगाया बैग उठाया और जाने लगी तो भाई ने टिफिन ले आया, " ले जाओ ना" ज्योति ने मना कर दिया
" मै वहीं कुछ खा लूंगी" और वो अपनी ड्यूटी पर चल दी...
टैक्सी में सोचती रही की माँ क्यों नहीं समझती की मै एक नर्स हूं और मुझे अपनी ड्यूटी करनी ही होगी। कोरोना जैसी भयावह बीमारी के आगे तो बड़े बड़े देशों ने घुटने टेक दिए औए भारत की लडाई तो अभी चल ही रही है बीमारी और उसपर से चंद लोगो के डर से अपनी ड्यूटी छोड़ कर वो अपने काम और देश से गद्दारी नहीं कर सकती।
पर माँ तो एक ही बात के पीछे पड़ी है कि छोड़ दे ये जॉब, घर पर बैठ जा, जब से सुना है की मेडिकल टीम पर कुछ लोगो द्वारा हमले किए जा रहे है , कही करोना मरीजों द्वारा नर्सो के साथ बुरा व्यवहार किया जा रहा तब से वो ज्योति के पीछे पड़ी है जॉब छोड़ देने के लिए ।
माँ की सोच अलग चल रही है पिता तो है नहीं एक छोटा बेटा है और बेटी 32 साल की हो चुकी है, बडी मुश्किल से एक जगह बात पक्की हुई है। लड़का ठीक कमा लेता है और अच्छा परिवार है। दीवाली के बाद शादी की तारीख निकली है ,माँ अपनी जिम्मेदारी पूरी करके निश्चिंत हो जाना चाहती है ।ये आदर्श, सेवाभाव और देशभक्ति की बाते माँ की समझ में नहीं आती ,उन को ये डर है कि की ससुराल वाले इसकी करोना मरीजों के इलाज में ड्यूटी का सुनकर रिश्ते से मना ना कर दे।
पर ज्योति भी धुन कि पक्की है एक बहादुर पिता की बेटी है, जो होटल ताज में आतंकवादियों से मुकाबला करते हुए शहीद हो गए थे ज्योति और उसका परिवार वो दिन वो समय भूले नहीं है...उसे गर्व था अपने पिता पर...
आखिर वो भी तो यही देशसेवा का सपना लिए पुलिस मे भर्ती हुए थे ...वही जज्बा उसमें भी है देशसेवा ....
इसलिए उसने ये नर्सिंग का कोर्स किया जो आज सचमुच कोरोना काल मे और अधिक महत्वपूर्ण बन गया है
मगर उसके माँ से झगड़े बढ़ते ही जा रहे थे शाम को घर वापस आते वक्त ज्योति ने सोच लिया था कि माँ को एक फिर समझाएगी, ना मानी तो वो घर छोड़ देगी और जबतक करोना की ड्यूटी है एक होटल में अपने रहने का इंतजाम कर लेगी....
टैक्सी से निकल कर ज्योति जैसे ही बिल्डिंग के दरवाजे पे पहुँची, तो जोरदार तालियों की गड़गड़ाहट ने उसका स्वागत किया। ज्योति थोड़ी देर के लिए सुन्न हो गयी। ये आश्चर्यजनक था। बिल्डिंग के लोग उसके सम्मान में तालियां बजा रहे थे, उसपर अक्षत बरसा रहे थे। ज्योति ने हाथ जोड़कर सभी का अभिवादन स्वीकार किया। ज्योति की आँख में थोड़े आँसू थे, वो अभीभूत थी इस सम्मान से। वो इस सब के लिए अपना काम नहीं करती है लेकिन उसे खुशी है कि उनके काम का सम्मान समाज में है। और ये सम्मान उस अकेली के लिए नहीं था ये सारे डॉक्टर, नर्स, सफाई कर्मचारी ,पुलिस, बैंक और मेडिकल स्टाफ के लिए था।
ये सब सोचते सोचते ज्योति लिफ्ट से ऊपर आ गयी। माँ से बहस करने की बात उसके दिमाग़ से निकल गयी थी। अपनी चाभी से दरवाजा खोल, वो सफाई के नियम का पालन करते हुये वो सीधे बाथरूम गयी और अच्छी तरह से नहा के निकली तो उसके कमरे के दरवाजे से कुछ दूरी पर माँ खड़ी थी और उनके हाथों में आरती की थाल थी।
"मैंने भी तुझ पर अक्षत डाले थे ऊपर से, जब तालियां बजना शुरू हुई तो में अचंभित थी। शायद तालियों से ही मेरा भरम टूटा। मैं पुत्री मोह और स्वार्थ में आकर तेरे काम को सिर्फ एक नौकरी समझ रही थी, मैं भूल गयी थी की ये जनसेवा है और इस समय में तो ये देश सेवा है और तुझे देश सेवा से रोकने की गलती में नहीं करूँगी।" ज्योति मुस्करा रही थी। वो माँ गले तो नहीं लगा सकती थी लेकिन उसने दूर से माँ को गले लगाने का इशारा किया और हँसने लगी। माँ ने मुस्कराते हुए उसकी आरती उतारी और फिर भाई को आवाज़ लगा कर ज्योति की थाली उसके कमरे में लगाने के लिया कहा, आज उसकी पसंदीदा सब्जी जो बनी थी.....
एक सुंदर रचना....
#दीप...🙏🙏🙏
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