"सुनिये जी.... बहू मायके जाने की इज़ाज़त मांग रही थी... अभी तो मैंने यह कहकर टाल दिया है कि तुम्हारे बाबूजी से सलाह करके बताती हूं....
लेकिन आपको बता रही हूं कि कल को अगर बहू आपसे ही पूछ ले तो आप कोई बहाना बनाकर टाल देना बस.....सुधा ने पति प्रकाश जी को समझाते हुए कहा...
"हां... हां.... अब मुझे ही बुरा बनाओ....
वैसे तुम उसे जाने क्यूँ नहीं देती ...
"आप भी कमाल करते है भूल गए क्या....
अपनी आराध्या भी तो बच्चों के साथ आ रही है इन छुट्टियों में और मुझसे तो अब काम होता नही....
घुटने पर हाथ रखते हुए इक आह के साथ सुधा ने कहा...
"देखो.....तुम्हारे इस बर्ताव से बहू कल को चिढ गई ना तुम्हें ही मुश्किल होगी....
कब तक दर्दो का हवाला देती रहोगी....प्रकाश जी ने पत्नी सुधा को चेताया....
"हुन्ह...चिढ़ कर जाएगी कहां....
मेरे मोहित ने अपनी पत्नी को जूते की नोक पर रखा हुआ है.... इतनी हिम्मत ना है बहू में....
एक गर्वमिश्रित मुस्कान से भर उठी सुधा...
तभी.....
"बाबू जी .....गीता की मां की तबियत बहुत खराब है... इसलिए हम एक सप्ताह के लिए दिल्ली जा रहे है.... अचानक मोहित ने अंदर आकर सूचित करते हुए कहा...
"लेकिन बेटा.. यूं अचानक ....
हम अकेले कैसे रहेंगे...." सुधा ने हैरानी से पूछा....
"मां.....गीता का मन बहुत परेशान है ऐसे वक्त मैं मना नहीं कर सकता....
और फिर आराध्या तो आ ही रही है ना...
आप अकेले कहां रहोंगे.....
मोहित के जाने के बाद सुधा गुस्से से बड़बड़ाते हुए पति प्रकाश जी को देखने लगी.....
"भई .....दीवारों के कान होते हैं, यह तो सुना था लेकिन दीवारों की ज़ुबान भी होती है आज इस बात का एहसास भी हो गया है....
गहरी मुस्कुराहट के साथ प्रकाश जी ने कहा और कमरे से बाहर निकल गए.....
वही कही गली मे कोई रेहड़ी वाला निकला जिसकी रेहड़ी पर लगे रेडियो मे एक गीत बज रहा था....
जो बोएगा वही पाएगा ...
तेरा किया आगे आएगा
सुख दुख है फल कर्मो का....
जैसी करनी वैसी भरनी .....
एक सुंदर रचना...
#दीप...🙏🙏🙏
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