"सुधा..... उठो..खाना खाने के लिये नीचे चलो,सब लोग तुम्हारा इंतजार कर रहे है....पति मोहन ने उससे कहा....

सुधा ने रोष भरे स्वर में कहा-"मुझे भूख नहीं है....
"पर हुआ क्या है....पति मोहन ने प्यार भरे स्वर में अपनी नयी नवेली पत्नी से पूछा....
"इस घर में तो तुम्हारे बड़े भाई-भाभी का ही दबदबा है.....
मुझे यहाँ घुटन महसूस होती है मैं अपना घर अलग बसाना चाहती हूं....क्रोध से फुँफकारते हुए सुधा बोली....

  बचपन में ही माँ-बाप की मृत्यु होने के बाद मोहन  को उसके बड़े भाई और भाभी ने बेटे के समान पाला था...
ये उसकी भाभी के मातृत्व और बड़े भाई के वात्सल्य का स्नेहिल आँचल था...जिसे आज नयी नवेली उसकी पत्नी सुधा उनका 'दबदबा' कह रही थी....
रोज के बढ़ते तनाव और सुधा के तल्ख़ व्यवहार से आहत होकर बड़े बेमन से उन्होने,उन दोनों को अलग रहने की अनुमति दे दी.....
    अब अलग रहने से सुधा की  तो मौज हो गई....
मोहन की कमाई को बड़ी बेरहमी से खर्च करती...
जैसा पहनना चाहती,वैसा पहनती....जहां जाना चाहती वहां जाती......
चार-पाँच साल बाद बच्चों के होने पर समाज में अपना 'स्टेट्स सिंबल'दिखाने के लिये उन्हें मोटी फ़ीस वाले स्कूलों में दाख़िला करवाया....
मोहन की कमाई तो पूरी ही नही पड़ती....
पारिवारिक तनाव से बचने के लिये और अपनी बीवी-बच्चों की फ़रमाइशों को पूरा करने के लिये बेचारा मोहन ओवर टाईम  करने लगा....
भविष्य में भाग्य कौन से रंग दिखलाता है,ये किसी को पता नहीं होता ....मोहन के साथ भी यही हुआ वह जिस प्राइवेट कम्पनी में काम करता था...
वह कंपनी अचानक नुक़सान में जाने लगी नुकसान को कम करने  के लिये उस कंपनी ने अपने कर्मचारियों की छँटनी करना शुरु कर दी,जिसमें मोहन का नाम भी शामिल था.....
रातों-रात मोहन सड़क पर आ गया....वह अब बेरोजगार हो गया सुधा की फ़िज़ूलख़र्ची से उसका बैंक एकाउंट भी शून्य था.....
सुधा के रिटायर्ड माता-पिता ने भी इन विपरीत परिस्थितियों में हाथ खड़े कर दिये....
अब घर का ख़र्चा कैसे चलता....सुधा के होश ठिकाने आ गये ....
आज इन परिस्थितियों मे उसे आटे-दाल का  भाव पता चल गया ....
 जब मोहन की ख़राब आर्थिक स्थिति का पता उसके बड़े भाई और भाभी को  चला तो वे दौड़े-दौड़े उसके घर पहुँचे और पहुँचते ही आड़े हाथों लिया उसे.....
"क्यों रे मोहन......अब तू इतना बड़ा हो गया कि अपनी इस हालत की हमें हवा तक नहीं लगने दी...
नालायक.....तुमने हमें अपना बेगाना समझा ना....
"-बड़े भैया ने उसे मीठी डाँट पिलायी.....
सुधा के जेठ-जेठानी ने ही उसके घर का राशन-पानी...यहा तक कि बच्चों की फ़ीस का भी ज़िम्मा भी अपने कंधों पर ले लिया...
  अगली सुबह मोहन सुधा और उनके दोनों बच्चों को अपने घर आया हुआ देखकर बड़े भैया और भाभी चकित रह गये....
मोहन ने अपने बड़े भाई के पैर छूते हुए कहा-"भैया मुझे नयी नौकरी मिल गई है.....
तभी मोहन के पीछे खड़ी सुधा अचानक फूट-फूटकर रोते अपनी जेठानी के चरण छूते हुए बोली-"भाभी,मैंने हमेशा आप को और भैया को ग़लत समझा और आप दोनों से दुर्व्यवहार किया....
और आप लोगों ने जो कुछ भी हमारे लिये किया..उसे तो मैं जिंदगी भर नहीं भूल सकती." 
"अरे पगली.... रोती क्यों है....
हम लोगों ने जो कुछ किया,वह हम लोगों का फ़र्ज़ था.जो हुआ,उसे भूल जा.अभी मैं गरमा-गरम नाश्ता और चाय बना रही हूँ....
अंदर आ और मेरी मदद कर."-जेठानी ने उसे गले लगाते हुए कहा.
 बाहर सूर्योदय हो चुका था.मंद-मंद हवा चल रही थी.पंछी चह-चहा रहे थे.प्रकृति भी इस सुखद पारिवारिक मिलन पर  मुस्करा रही थी.....
एक सुंदर रचना...
#दीप...🙏🙏🙏