बिरजू जैसे ही अपनी रिक्शा लेकर निकलने को हुआ पत्नी उसे मनुहार करते हुए बोली -कहा जाइएगा ऐसी घूप मे ....बहुत गर्मी है शाम को चले जाना .....घूप तो मानो आग बरसा रही है
पगली .... घूप की आग को बरदाश्त नही करूंगा तो पेट की आग कैसे बुझाऊंगा .....खुद तो भूखे रह लेगे तू और मे ...मगर बच्चे ....पहले ही लाँकडाउन और इस बीमारी ने कमर तोड दी है ...कहकर चल दिया ...पत्नी ना चाहते हुए भी मजबूर थी की वो कया करें खुद उसका काम भी तो बडे लोगों के डर ने छुडवा दिया था.....
जून की तपती गर्मी मे दूर दूर तक कोई सवारी नही दिख रही थी ....पसीने मे तरबतर बिरजू की नजरे बस किसी सवारी को ढूंढ रही थी अचानक किसी ने आवाज दी -काका ....बाजार तक चलोगे ....
हां जी...बिरजू ने पलटकर देखा तो उसकी बिटिया की उम्र की एक लडकी ने उसे रोकने का इशारा करते हुए कहा...
कितना लोगे....
जो इच्छा करें बिटिया ....बिरजू ने कहा ....लडकी रिक्शा मे बैठ गई ....बाजार मे पहले एक कपडे की दुकान पर फिर एक कैमिस्ट की दुकान पर रिक्शा रुकवाई ..कुछ समान लेकर वापस रिक्शा मे बैठकर बोली -काका ...जहां से आए थे अब वही वापस चलो ..
बिरजू ने रिक्शा लडकी के कहे अनुसार वापसी ले लिया..... उसी जगह पहुंच कर लडकी उतरी और अपने हाथो से समान मे से एक अंगोछा ...एक मास्क ...पानी की बोतल सहित सौ रु देकर बोली - काका ...ये लीजिए आपकी मेहनत....
पर बिटिया ...यहां से बाजार तक तो केवल बीस रु होते है और आप सौ रु ....और ये मास्क अंगोछा....
काका ....ये आपकी मेहनत और ये आपकी और आपके परिवार की सुरक्षा के लिए ...कहकर चलती बनी ....
बिरजू भीगी हुई आँखों से उस नन्ही सी फरिश्ता बनकर आई सवारी को देख रहा था ....और सोच रहा था ...यही तो मानवता ...यही तो है इंसानियत ....जरुरत मंद को बिना बताए बिना जताए मदद कर देना ....वरना तो लोग चार केले देने पर भी मोबाइलों से दसों फोटोज निकाल लेते है ताकि दस लोगों को भेजकर बता सके वो कितने बडे इंसान है उनमें कितनी मानवता है ......जीती रहो बिटिया ...जीती रहो ....भगवान तुम्हें सदा खुश रखे....
अनेकों दुआएं देता बिरजू सिर पर अंगोछा ओढे मुंह पर मास्क लगाए चल दिया दूसरी सवारी की तलाश में....
एक सुंदर रचना...
#दीप...🙏🙏🙏