सुखराम रोज ताजी सब्जियां लेकर आता था ... कभी-कभी साथ में उसकी बिटिया भी होती जो मेरी पांच साल की बेटी आराध्या की हमउम्र थी ...
जब मैं सब्जियां खरीदती तो आराध्या उसकी बेटी के साथ खेलने लगती ....
सचमुच बच्चे मन के सच्चे होते है इन्हे जात - पात , अमीरी - गरीबी से कोई वास्ता नही होता बस हमजोली बन जाते हैं....
सुखराम ने आज डोर बैल बजाई....
रोज तो उसकी दूर से आती आवाज़ सुनकर ही मैं दरवाजा खोलती थी पर आज वह अति उत्साह में था, उसके पास मुझसे साझा करने को दो खुशखबरी थी ...
मुझे देखते ही उसन छोटा-सा मिठाई का डिब्बा आगे किया और बताया ..बहन जी आज मेरी गुड़िया का जन्मदिन है और आज ही मैंने यह अपनी छोटी सी गाड़ी खरीदी है वह सकुचाते हुए बता रहा था पर मुख मंडल दमक रहा था मेहनत की कमाई की आभा से....
आज वह टोकरी पर नहीं बल्कि ठेला गाड़ी पर तरह-तरह की ताजी सब्जियाँ करीने से सजाकर लाया था , और ठेले पर उसकी नन्ही बिटिया विराजमान थी बाप-बेटी दोनो खुश लग रहे थे....
मैंने सुखराम उसकी चलती-फिरती छोटी सी दुकान खुलने की बहुत बहुत बधाई दी फिर उसकी बिटिया की तरफ बढी दिमाग में जोर डालते ही याद आया उसने वही फ्रॉक पहनी है, जो आराध्या के लिए पिछली दिवाली में ली थी और चेन खराब होने के कारण लगभग एक माह पहले ही सुखराम दे दी थी....
मुझे देखकर वह अपनी फ्रॉक का घेर नन्हे हाथों से फैलाने लगी मैंने उसे जन्मदिन की बधाई दी और कहा आज तो तुम परी लग रही हो ...
उसने तुरंत मीठी बोली में जवाब दिया बाबू लाए हैं मेरी फ्रॉक और ये गुड़िया भी ...
गुड़िया भी वही थी जो मैने दी थी आराध्या ने खेलकर तोड़ दी थी, पहले वह बैटरी से चलने वाली हुआ करती थी...
इतने में मेरी नटखट आराध्या भी आ गई और अपनी सखी को देखकर उसके साथ बैठने को मचलने लगी ...
सुखराम बड़े जोश के साथ आराध्या को अपनी बिटिया के पास बैठाया मानों यह उसका विमान हो, और दो चार कदम घुमा लाया....
ऐसा लग रहा था, दो नन्ही परियां राज रथ पर सवार खिलखिला रही हों अमीर - गरीबी का कोई फर्क नही था मेरी गुनगुन लाखों की कार के आगे उस ठेले पर बैठकर अति प्रसन्न थी....
मुझे महसूस हुआ बड़ी - बड़ी खुशियां हैं छोटी छोटी बातों में ...
सबके अपने मापदंड होते हैं खुशियों के ...
एक सुंदर रचना...
#दीप...🙏🙏🙏
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