भाभी नाश्ते की  प्लेटे कमरे में रख गयी थी.....
आलू की कचौरी और सूजी का हलुवा.....
दोनो मेरे फेवरिट.. मैने बिना समय गँवाये अपनी प्लेट उठा ली और स्वाद लेकर खाते हुये सुधा से बोला, 
"वाह! 
भाभी सब कुछ लाजवाब पकाती है....तुम भी ले लो सुधा वरना नाश्ता ठंडा हो जायेगा..."
सुधा अलमारी में पता नहीं क्या ढूंढ़ रही थी जब मैंने दुबारा अपनी बात दोहराई तो वह अप्रत्याशित रुप से फट पड़ी, "भाभी..भाभी..चौबीस घंटे बस यही प्रलाप.. ..उनके आने से पहले तुम्हे नाश्ता-खाना थोड़े ही मिलता था....
 और वो भी सुबह-सवेरे ही किचन में आ धमकती हैं.....मोहन  को ये पसंद है.....मोहन को वो पसंद है .....अरे भाभी ना हुई....
 सौत हो गयी मेरी..."
 प्लेट मेरे हाथों से नीचे जा गिरी.... मेरे काँपते हाथ का तमाचा सुधा के गाल पर पड़ता इससे पूर्व ही भाभी बीच में आ खड़ी हुई... मैं ग्लानि और अपराध-बोध से मानों धरती में जा गड़ा सुधा की ओर मुड़ भाभी मंद स्वर में बोली, "मेरा इरादा तुम्हारे घर या रसोई में दखल देने का नहीं था सुधा.....
तुम लोग जो हमारे लिये कर रहे हो उसके बदले में मैं तुम दोनों के लिये कुछ करना चाहती थी.....
और बस रसोई का काम ही मुझे अच्छे से आता है.....शायद इसीलिये ये भूल हुई...
सुधा खामोश खड़ी रही.... भाभी ने मेरी ओर देखा और आहत स्वर में बोलीं, "मोहन.....मेरा और दीपू का गांव लौट जाना ही अच्छा होगा...
वे बाहर चली गयी....मैं सुधा की ओर देखता हूँ जो उसने आज किया वैसी स्त्री वो नहीं है मै उसकी तरफ बढ़ता हूँ......और अतीत की तरफ भी....
भैया गाँव से बीस किमी दूर कस्बे के इंटर कॉलेज में टीचर थे भाभी जब ब्याह कर आई तब सत्रह- अट्ठारह की ही रही होंगी भाभी को ब्याह में भैया के साथ-साथ बिस्तर से लगी बीमार सास और हम दो भाई-बहन की जिम्मेदारी भी मिली थी.....
मैं ग्यारह बरस का और पूनम दीदी तेरह की..... 
मैं बेहद खिलंदरा और लापरवाह था मगर भाभी ने कभी माँ बनकर कभी दोस्त बनकर हमेशा राह दिखाई...
यदि वे चाहतीं तो भैया कभी हमारी जिम्मेदारी ना उठा पाते.....और तब.....आज मै किसी ढाबे पर बर्तन धो रहा होता और पूनम दी अपनी ससुराल में ना होकर कहीं......कहीं......
"मेरा कंठ अवरूद्ध हो गया...
 सुधा की नजरें मेरी ओर उठी
"वे अब भी गाँव से यहा आना नही चाहती थीं, क्योंकि वहा हर तरफ भैया की यादें हैं.....
पर मैं दीपू की पढ़ाई का वास्ता देकर जबरन उन्हें यहा लाया.....
ताकि.....मैं उस ऋण  का एक अंश भी चुका सकूँ जो उन्होने और भैया ने हमारे लिये किया....
" आँसू मेरी आँखों में नहीं सीने मे आ जमे हैं...
"मगर शायद मैं गलत था.....मुझे उन्हे वहीं रहने देना चाहिये था..उनके घर में, जहाँ की वो स्वामिनी थीं....
मैं उन्हे वहीं छोड़ आउँगा..सुधा.....उनके घर.."
 मैं उमड़ते आवेग को थामते बाहर निकल आया।
  भाभी ने अपना सामान बाँध लिया है....
सामान ही कितना है....मैं आगे बढ़ संदूक उठाने झुकता हूँ उससे पूर्व ही सुधा तेजी से मेरा हाथ रोक देती है, "भाभी कही नहीं जा रही मोहन..... 
यही उनका घर है..."
मैं थम जाता हूँ भाभी कुछ कहना चाहती हैं उससे पहले ही सुधा ने उनके पाँव पकड़ लिये....
आपने मोहन को भी बहुत बार क्षमा किया है ना....
मैं जानती हूँ मेरी गलती बड़ी है पर आप भी तो बड़ी हो ना भाभी.....आपको मुझे माफ करना होगा..."
भाभी ने सुधा  को कंधे से उठा लिया और हमेशा की तरह शांत स्वर में बोलीं, "तुमसे कोई गलती नहीं हुई सुधा......
सिर्फ गलतफहमी हुई...बस इतना याद रखना हर रिश्ता उम्र से तय नहीं होता..मै मोहन की भाभी बाद में, माँ पहले हूँ......चलो मोहन.....
मीता की आँखों मे आँसू भर गये उसने भाभी के पीछे दुबके खड़े दस बरस के दीपू को अपनी बाँहो में खींच लिया, "हम सब मिलकर  दीपू की उसी तरह परवरिश करेंगे जैसा भैया चाहते थे.....
और आप भी मुझे एक अच्छी मां बनने से रोक नहीं सकतीं..."
और आँसुओं के बीच भी हम सब यकायक खुशियों के सागर में डूब गए...
एक सुंदर रचना...
#दीप...🙏🙏🙏