शादी की सभी रस्मे चल रही थी...
मेरे भैया भाभी सभी रस्में कर रहे थे ...
मैं और नवीन शादी के लिए मंडप में बैठ चुके थे...
चुमावन का कोई एक रस्म है वही सब निभा रहे थे....
मेरी बुआ, मौसी,मामी, भाभी और उधर से आई ....
इनकी मां और बड़ी बहने भी...
मैं और नवीन एकदूसरे को देख रहे थे तभी नवीन की माँ बोल पड़ी मेरी माँ से....
"बहन जी आइये.....
आप उतनी दूर क्यूँ हैं.. दोनों को चुमाइये.. अपना आशीर्वाद दीजिये"
"नहीं.. नहीं..... मेरा आशीर्वाद तो हमेशा ही है....
"वो तो है ही बहन जी, पर रस्म तो पूरी कीजिये"
"बहन जी इस शुभ कार्य में मेरा ये सब करना उचित नहीं है....
आप जिद ना करें...माँ रुआंसी हो उठी...
पूरी शादी में मां ने मुझे छुआ तक नहीं....
बुआ ने कहा था....
"भाभी...ध्यान रहे कुछ अपशकुन ना हो, बच्चों के भविष्य का सवाल है लड़के वालों को भी ये ठीक नहीं लगेगा....
"नहीं आप ठीक कह रही हैं दीदी, सभी रस्में बेटे बहु ही करेंगे...
माँ पूरी शादी दूर से ही मुझे देखा करती...
जिस माँ ने अब तक मेरे लिए सबकुछ किया वही पूरी शादी मुझसे दूर रह रही है उसे देख मन भर आता मगर बड़ी बुआ को देख चुप हो जाती....
आखिर बुआ बोल पड़ी
"इस शुभ कार्य में सब शुभ हो इसलिए तो सारे रस्म बेटे बहू कर रहे हैं....
भाभी का आशीर्वाद तो सदा इनके साथ ही है, पर उनका इन रस्मों में होना ठीक नहीं"
"ठीक कैसे नहीं हैं बहन जी...
एक मां का तो पहला हक है इन रस्मों पर...
क्या पति के चले जाने से एक औरत और एक मां का अस्तित्व खतम हो जाता है...
बड़ी बुआ के पास इन बातों का कोई जवाब नहीं था...
"आइये बहन जी अपना हक अदा कीजिये....
सासु माँ ने मां का हाथ पकड़ उसमें अक्षत और हल्दी पकड़ा दिए....
मां भरी आँखों से रस्म निभाने लगी और मैं बहू बनने से पहले उस मां की बेटी बन गई .....
जिस मां ने मेरी मां को इतना मान दिया......
एक सुंदर रचना...
#दीप...🙏🙏🙏
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