सविता जी के दो बेटे है ....
 उनको और उनके पति को बेटी की बड़ी इच्छा थी पर दोनों बेटे हुए... 
सविता जी हमेशा कहती थी कोई बात नहीं मैं अपनी बहूअों को बेटी बनाकर हमेशा अपने पास रखूंगी...
बेटी होती तो वो फिर भी विदा हो जाती, ये सोचकर हमेशा अपने मन को तसल्ली देती...

अब बेटे भी बड़े हो गए, सविता जी को अपने सपने पूरे करने की जल्दी लगी थी तो उन्होंने लड़की देखना भी शुरू कर दिया, पर बड़े बेटे मोहन ने ऑफिस में ही गायत्री को पसंद कर लिया था... 
गायत्री साउथ इंडियन थी और मोहन नॉर्थ इंडियन.... परंपरा अौर रिवाजों मे दूर-दूर तक का कोई समानता नहीं थी, लेकिन सविता जी मोहन के डर के विपरीत गायत्री को देखने के लिए मान गई... 
देखने का प्रोग्राम फिक्स हुआ गायत्री की फैमिली को अपनी बेटी की पसंद पहले से ही पसंद थी सविता जी ने गायत्री को देखते ही पसंद कर लिया...
 कोर्ट मैरिज हुआ, रिसेप्शन हुआ, सब निपटने बाद मोहन और गायत्री हनीमून पर भी जाकर आ गए...

अब शुरू हुआ गायत्री का नया सफर ससुराल में... 
किचन में गायत्री का पहला दिन था उसे कुछ सूझ नहीं रहा था क्या बनाए, सविता जी रसोई में अपनी बहू की उधेड़बुन समझ गई बोली "कुछ भी बना लो बेटा सब अपने घर के ही लोग है....

गायत्री बोली "पर मम्मी जी मुझे तो बस साउथ इंडियन खाना ही बनाना आता है वह भी थोड़ा थोड़ा....
सविता जी ने मुस्कुराते हुए कहा "चलो अच्छा है अब से कुछ वैरायटी खाने मिलेगी इसकी शुरुआत आज से ही हो जाए...
तुम्हें जो बनाना है बनाअो...
गायत्री बोली "पर मम्मी जी सबको पसंद आएगा...
सविता जी बोली "तुम प्यार से बनाओगी तो क्यों पसंद नहीं आएगा...

गायत्री बोली "क्या आप मुझे नॉर्थ इंडियन खाना बनाना सिखाएंगी...
सविता जी को तो जैसे सारे जमाने की खुशी मिल गई। उनकी तो बरसों की इच्छा पूरी होने वाली थी, बेटी को खाना बनाना सिखाने की। मुस्कुरा कर बोली "जरूर, पर एक शर्त पर तुम मुझे मम्मी जी नहीं मम्मी बोलोगी मोहन और सोहन की तरह...

गायत्री बोली "ठीक है मम्मी...

गायत्री ने सबके लिए साउथ इंडियन खाना बनाया, जो सबको बहुत पसंद आया। ससुर जी ने नेग में उनकी और सविता जी की तरफ से गिफ्ट दिया...
धीरे-धीरे गायत्री अपने ससुराल में सेट हो गई।

सविता जी ने गायत्री को अपने घर के रिवाज़, खान-पान सब सिखाया, गायत्री ने भी मन लगाकर सब सीखा। गायत्री ने सविता जी को लैपटॉप चलाना, साउथ इंडियन खाना बनाना सिखाया जिसे सविता जी ने भी बड़े प्यार से सीखा।

एकदिन गायत्री की मां उनके घर आई.... सविताजी से पूछा "गायत्री आपके घर में सब संभाल तो पा रही है ना...

सविता जो बोली "समधनजी हर बहु एक कोरा कागज होती है, उसमें जैसे जो लिखना चाहो लिखो वही आप पढ़ पाओगे... 
गायत्री को मैंने अपनी बेटी माना और उसने मुझे मां... ताली दोनों हाथ से बजी...
 मैने उसे इस घर के रिवाज खान-पान सब सिखाया तो उसने भी सब सीखने में अपनी दिलचस्पी दिखाई मैं भी कभी बहू थी, मेरे मायके के रिवाज़ खाने का तरीका अलग था... मेरी सास ने ही मुझे सब सिखाया
 बेटी को सब नहीं सिखाया जा सकता ससुराल का पर मैं खुशकिस्मत हूं मेरी बेटी को मैं सब कुछ सिखा पा रही हूं उसके ससुराल में, गायत्री मेरी बेटी जो है।
बेटी का सुख क्या होता है मुझे गायत्री आने के बाद पता चला। वो कई बात मेरे बिना बोले समझ जाती है जो शायद बेटे नहीं समझ सकते...

इतने में गायत्री चाय लेकर आई और अपनी दोनों मांअों के साथ गप्पे मारने लगी। कोई अनजान देखकर यह नहीं बता सकता कि गायत्री की मां कौन है और सास कौन... गायत्री कि मां को उस दिन अपनी आंखों से सब देखकर तसल्ली मिली....
सविता जी ने जैसा कहा वैसा ही करके दिखाया....
एक सुंदर रचना....
#दीप...🙏🙏🙏